विचार और साहित्य की दुनिया को वैज्ञानिक एवं विवेकसमृद्ध दृष्टिकोण से देखने-परखने का एक खुला मंच
A public forum for negotiating thought-provoking & literary writings with scientific and rational approach
तमाम कवितायें अच्छी हैं पर ‘पत्नी से अबोला’ की ये पंक्तियाँ आलोड़न कर मन में एक खास घर बना लेती हैं- उलझी हुई है डोर गुम हो चुके सिरे दोनों न लगाई जा सकती है गाँठ फिर कैसे बुहारा जाएगा इस मनहूसियत को घर की दहलीज से एकदम बाहर अब तो बरदाश्त भी दे चुकी है जवाब
और ‘डूबते हरसूद पर पिकनिक’ की ये मानीखेज लाइनें- तलाशा जाता है एक मृत सभ्यता को खोद-खोद कर मोहनजोदड़ो, हड़प्पा और भीमबेटका में और एक जीवित सभ्यता देखते-ही-देखते अतल गहराईयों में डुबो दी जाती है..
निहित स्वार्थ और थोथे राष्ट्रवाद के कुछ देशद्रोही कर्म पर भी सटीक बैठती है.बाबरी मस्जिद विध्वंस और इंडोनेशिया के गौतम बुद्ध से सम्बद्ध स्तूपों के ध्वंस ऐसे ही कुछ गर्हित कर्म हैं.ये ‘रक्षा में हत्या’ सरीखा हत्कर्म हैं. बधाई, रचना-पुरस्कर्ता को और आभार काव्य-प्रस्तुतकर्ता का!
तमाम कवितायें अच्छी हैं पर ‘पत्नी से अबोला’ की ये पंक्तियाँ आलोड़न कर मन में एक खास घर बना लेती हैं-
जवाब देंहटाएंउलझी हुई है डोर
गुम हो चुके सिरे दोनों
न लगाई जा सकती है गाँठ
फिर कैसे बुहारा जाएगा इस मनहूसियत को
घर की दहलीज से एकदम बाहर
अब तो बरदाश्त भी दे चुकी है जवाब
और ‘डूबते हरसूद पर पिकनिक’ की ये मानीखेज लाइनें-
तलाशा जाता है एक मृत सभ्यता को खोद-खोद कर
मोहनजोदड़ो, हड़प्पा और भीमबेटका में
और एक जीवित सभ्यता
देखते-ही-देखते
अतल गहराईयों में डुबो दी जाती है..
निहित स्वार्थ और थोथे राष्ट्रवाद के कुछ देशद्रोही कर्म पर भी सटीक बैठती है.बाबरी मस्जिद विध्वंस और इंडोनेशिया के गौतम बुद्ध से सम्बद्ध स्तूपों के ध्वंस ऐसे ही कुछ गर्हित कर्म हैं.ये ‘रक्षा में हत्या’ सरीखा हत्कर्म हैं.
बधाई, रचना-पुरस्कर्ता को और आभार काव्य-प्रस्तुतकर्ता का!